कुछ पाने की चाह में हम यूँ मशगूल हुए
जो पड़ा था सामने उसको भी हम भूल गए
जिंदगी में कशमकश, या कशमकश ही है जिंदगी
ऐसी भी क्या चाह थी, कि चाहना ही भूल गए
कुछ पाने की चाह में हम यूँ मशगूल हुए
मतलब के सामने हम रिश्ते ही भूल गए
लड़ रहे हैं ख्वाहिशों से, ख्वाहिशों के नाम पर
भुला दिया उस प्यार को, क्या अपने आप को भी भूल गए
ढूँढ लिए जवाब लेकिन सवाल हम भूल गए
कुछ पाने की चाह में हम यूँ मशगूल हुए
जो पड़ा था सामने उसको भी हम भूल गए
Netflix के क्रेज में, साथ खाना हम भूल गए
Instagram stories के ज़माने में, कहानियाँ सुनना और सुनाना हम भूल गए
मेरे वाली कॉफी के शौक में, चाय बनाना हम भूल गए
दिखावे के होड़ में, कमाना हम भूल गए
दोस्ती तो हजारों से की, लेकिन निभाना हम भूल गए
कुछ पाने की चाह में हम यूँ मशगूल हुए
जो पड़ा था सामने उसको भी हम भूल गए
©Inkit_poetry
Nice bruhh❣️
ReplyDeleteWow...
ReplyDelete❣️
ReplyDeleteNice..it's really deep🙌🏼
ReplyDelete