उँजाले में भी अक्सर अँधेरा होता है
कुछ रातें ऐसी भी होती है जिनमें सवेरा होता है
तुम ही बताओ वक़्त कैसे बर्बाद करूँ
रातों में जागूं, और दिन भर तुम्हें याद करूँ
तुम्हें याद करने के बहाने भूल सा गया हूँ
दो चार शब्द पढ़ने में जब से मशगूल हुआ हूँ
हाथ में कलम है, बगल में रखा है कोरा काग़ज़
लगता है एक दो शब्द से ही होगा आगाज़
तुम जन्नत बोलो मैं कश्मीर लिखूंगा
तुम्हारें हुस्न का नूर भी लिखूंगा
तुम कड़क बोलो मैं चाय लिखूंगा
तुम चुप रहोगी तो मैं अपनी राय लिखूंगा
तुम हाल पूछोगी, मैं अच्छा लिखूंगा
तुम युवक बोलेगी, मैं बच्चा लिखूंगा
तुम दिल बोलो, मैं धड़कन लिखूंगा
तुम्हारें होठों की कंपन भी लिखूंगा
बस मॉनसून की पहली बारिश नहीं लिख पाऊँगा
क्योंकि एक ही काग़ज़ बचा है
©Inkit_poetry
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