आँखें नम हो गई,
कुछ बीते पलों को याद कर,
समय की बनावट पर मुस्कुरा तो रहा हूँ ,
मगर सुर्ख ऑंखों से।
कभी-कभी लगता है, अच्छा वक़्त जल्दी क्यों बीत जाता है,
क्या हम इतने बुरे हैं?
पल दो पल के लिए उनका आना,
गले लगाना और वापस चले जाना
ये महज़ एक इत्तेफाक तो नहीं है ।
कहीं समय को हमसे कोई मलाल तो नहीं है?
यूं तो दोस्ती का प्रसताव लिए फिरता हूँ
कुछ अच्छी यादें, कुछ घाव के लिए फिरता हूँ ,
क्या इतना आसान होता है आगे बढ़ जाना ?
भूतकाल का स्मरण, भविष्य से घबराहट का क्या?
मालूम नहीं क्या मुकम्मल करना है,
आकाश ही सीमा है, जहां जवान तैनात नहीं ।
सर्द रातों में, ओस की बूँदों से भीगती किताब
अंगीठी में दहकता हुआ आखिरी कोयाले का टुकड़ा
चिंता और चिता में बिंदी का फर्क,
समय इतना सामर्थ्यं है सोचा नहीं था ।
-inkit_poetry
Comments
Post a Comment
Thanks for reading. Do follow @inkit_poetry for more amazing content .